4/04/2007

अर्थशास्‍त्र विभाग के पुरस्‍कार वितरण मे एक मजेदार घ्‍टना

मेरे मित्र

मेरी मित्र मंडली

विभागाध्‍यक्ष पी एन मल्‍होत्रा
दाये से बॉये चर्तुबेदी सर, मनमोहन कृष्‍णा व जावेद अक्‍खतर

मनमोहन कृष्‍णा सर्व श्रेष्‍ठ अध्‍यापक विश्‍वविद्यालय में ऐसा कोई खराब व्‍यक्ति नही जो इनसे नही डरता है।

मै और अन्‍य विजेता मित्र

यहाँ जो चित्र मै प्रस्‍तुत कर रहा हूँ वह मेरे लिये बहु मूल्‍य है भले ही वे साफ और स्‍पष्‍ट नही है। वे उन गुरूजनों के है जिन्‍होने मुझे इस योग्‍य बनाया। यह चित्र मैने विश्‍वविद्यालय में अर्थशास्‍त्र विभाग की तरफ से आयोजित पुरस्‍कार समारो‍ह के दौरान खीचा था। उस कार्यक्रम में मुझे सांत्‍वना पुरस्‍कार मिला था। मैने सोचा था कि कैमरा लेते चलता हूँ पुरस्‍कार वितरण के दौरान मेरी फोटों खीच जायेगी। पर मै कार्यक्रम में काफी लेट पर समय से पहुँच गया। एक अजीब वाक्‍या हुआ प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्‍कार का वितरण हो चुका था और मेरा नाम लिया रहा था। और मै कमरे में कार्यक्रम कक्ष में मौजूद नही था। सभी दर्शक गण एक दूसरे का मुँह देख रहे थे कि कौन है प्रमेन्‍द्र प्रताप ? पर उन्हे कोई दिख नही रहा था। चूकिं मेरे साथ मेरे कई मित्र थे और मै अपनी साइकिल से लगभग 8 किमी चलाकर काफी तेज रफ्तार से चला कर पहुँचा था। साईकिल स्‍टैनड से लगभग 200 मीटर दूर अर्थशास्‍त्र विभाग था। और मै काफी तेज दौड़ते हुऐ अर्थशास्‍त्र विभाग की ओर दौड़ा मै आगे आगे मेरे मित्र पीछे पीछे चूकिं कार्यक्रम मे ध्‍वनि विस्‍तारक यन्‍त्र का प्रयोग हो रहा था तो मुझे अपने नाम पुकारने की हल्‍की आवाज सुनाई दी और मेरी गति और तेज हो गई। जैसे ही तीसरी बार प्रमे... निकला मै अपनी फुल स्‍पीड की गति से मुख्‍य अतिथि के समाने था। मेरी गति इतनी तेज थी कि मेरे मित्र काफी पीछे रह गये और मेरी तस्‍वीर नही ले पाये।
पर मेरे इस कदर कक्ष मे पहुँचने पर जितने प्रतिभागी और दर्शक बैठे थे उनके मुँख पर हँसी की फौवार थी यहॉं तक कि अध्‍यापक गण भी अपनी हँसी नही रोक पाये। जिस हँसी की पीछले 30-40 मिनट से कमी महसूस हो रही थी। वह मेरे पहुँचने से पूरी हो गई।
मेरी इन्‍ट्री विल्‍कुल फिल्‍मी हीरो/विलेन की तरह थी। मुझे मेरे इस तरह पुरस्‍कार लेने की घटना को आज भी जब सोचता हूँ तो अपनी हँसी रोक नही पाता हूँ। क्‍योकि मेरी इच्‍छा थी कि मै अपने पूज्‍य गुरू से यह पुरस्‍कार सबके प्राप्‍त करूँ न कि किसी कर्मचारी से दफ्तर मे।

बात सन 2005 की है।

8 comments:

Anonymous said...

बधाई।
पुरस्कार की खुशी और आपकी इसके प्रति भावना के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा। :)

Pramendra Pratap Singh said...

धन्‍यवाद जगदीश जी,
यह बात 2 साल पुरानी है। जब मै स्‍नातक भाग दो का छात्र था।

तब मै ब्‍लाग नही लिखता था। आज पुरानी हार्डडिस्‍क एड किया था उसी मे यह चित्र देखा और यह वाक्‍या फिर से याद आ गया।

Anonymous said...

देख ले बच्चा... समय पर पहुंचता तो भागना नहीं पड़ता। लेकिन एक बात ये भी तो है कि तुम समय पर पहुचंते ये घटना इतनी यादगार नहीं बन पाती :)

अफ़लातून said...

ऐसे कई पुरस्कार मिलते रहें,कामना है।दौड़ कर लें,चाहे चल कर।

Anonymous said...

पुरानी सफलता पर नई नई बधाई स्वीकार करें.

आगे भी सफलताओं के पीछे दौड़ते रहें, वे आपके पीछे दौड़ी चली आएगी.

अच्छा वर्णन. :)

Sagar Chand Nahar said...

बहुत अच्छे

हरिराम said...

देर आए, दुरस्त आए!

MEDIA GURU said...

gajab kiya............

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