5/28/2007

प्रकृति के आगे जी‍ती मानवशक्ति

अधिवक्‍ता अरविन्‍द, मुंशी मुन्‍ना सिंह व चाय वाले का लड़का आटे के भगोने के साथ

मेरी माता जी छोटे -छोटे कुकरों मे 35 किलो आलू उबालती हुई

अधिवक्‍ता अरविन्‍द व जी पी सिंह साथ में ड्राइवर जीतेन्‍द्र
सुबोध, अधिवक्‍ता देवेन्‍द्र प्रताप सिंह, अनुराग, मानवेन्‍द्र भइया व मनोज
क्‍या बताना जरूरी है ?

मेरे दोनो भाई व माता जी
जीतेन्‍द्र व मुंशी समरथ सिंह परिहार

गर्मा गर्म पूड़ी
मध्‍य में वरूण
जैसा की आपको विदित होगा कि प्रयाग मे आयो‍जित तृतीय विश्‍व हिन्‍दू सम्‍मेलन मे प्रकृतिक आपदा की मार झेलनी पड़ी थी। किन्‍तु प्रकृति भी तब हार मान लेती है जब मानव शक्ति एकात्रित होती है। जैसा कि सम्‍मेलन 11 से 13 तक आयोजित होने की तिथि पूर्वनियोजित थी और कार्यक्रम उसी अनुसार हुआ किन्‍तु 10 तरीख से प्रकृति ने परीक्षा लेना शुरू कर दिया था। किन्‍तु प्रयागवासी भी गम्‍भीर परीक्षा के लिये हमेशा तैयार रहते है। 11 की सुबह तक कार्यक्रम स्‍थल पूरा का पूरा ध्‍वस्‍त हो चुका था, और प्रयाग नगरी मे लगभग 3 लाख हिन्‍दू इधर उधर शरण स्‍थली में आश्रय ले रहे थे। मेरे घर पर रात 3 बजे से ही कार्यक्रम स्‍थल की व्‍वयस्‍था चरमराने की सूचना आ गई थी, और इस सूचना के बाद सबसे बड़ी समस्‍या थी रेलवे स्‍टेशन पर स्थित भीड़ को कार्यक्रम स्‍थल तक जाने से रोकना तथा उन्‍हे जनपद मे स्थि‍त विभिन्‍न कालेजों मे ठहराने की। इस के लिये अनेक स्‍थानीय कार्यकर्ता लग गये। धीरे धीरे 8 बज गये और अब समस्‍या थी इतने लोगों के भोजन की व्‍यवस्‍था की। परन्‍तु मैने पहले ही कहा था कि जब मानव शक्ति एकत्र होती है तो बड़ो बड़ो को हार माननी पड़ती है। इस कार्य हर घर की सहभागिता हो तो फिर से फोनों का दौर चालू हुआ वह ऐसी स्थिति थी कि शहर मे पिछले 12 घन्‍टों से ज्‍यादा समय से बिजली पानी नही था। किन्‍तु किसी ने आपने व्‍यक्तिगत परेशानी को न देखते हुऐ मेरे मुहल्‍ले के लोगो नगरिको ने लगभग 20 हजार से ज्‍यादा भोजन पैकेट तैयार हो गये मात्र दो घन्‍टे के अन्‍दर, फोन के साथ मेरे निवास पर भी भोजन बनाने का दौर प्रारम्‍भ हो गया था जिसके चित्र प्रस्‍तुत है। प्रकृतिक निश्चित रूप से मानव शक्ति की जीत थी। प्रयाग के लोगों ने अधिकतम लोगों को भूखा नही रहने दिया। वह दिन मेरे लिये एक याद गार दिन था जो मै कभी नही भूल पाऊँगा।

पूर्व की कड़ी

8 comments:

Rising Rahul said...

हमरे घरे से भी गयी रही , जब मस्जिदीया पे पहिला हमला हुआ रहा . कइयो लोग जौन पैईकरमा करय आवा रहे , भगदड़ मा घायल होई के हस्पताल मा भरती रहे , बहुत पुण्य वाला काम किहे हो भइया . लेकिन भूखन घायलन की कौनो जात नाही होत है .

RC Mishra said...

पर्मेन्दर जी अपना घर दिखाय दिये हो, हम आ रहे हैं :)

Udan Tashtari said...

उत्तम कार्य. बहुत साधुवाद. माता जी को नमन.

Arun Arora said...

भाई जहा संघ या विश्व हिन्दू परिषद का नाम आये चाहे वह कुछ भी कर रहे हो जरा अपने पाले पार के भाइयो के लिये अलग स्थान छोड दिया करो और लिख भी दिया करो यहा अपनी गंदगी फ़ैलाये

Anonymous said...

संगठन व समर्पण सदा विजयी होते है.

हरिराम said...

दो घण्टे में इतना सारा... इतना स्वादिष्ट... तो शायद 'हल्दीराम' या 'गांगुराम' घराने भी सप्लाई नहीं कर पाते, बिना एडवान्स बुकिंग किए। अति स्तुत्य सेवा!

पर जगह तैयार कर लें रखने के लिए, इसका दस लाख गुना वापस मिलेगा...

MEDIA GURU said...

pahle to mujhe laga ki tum bina bataye itni badi parti rakh li..............per bad me samjha........\ tara chandra

राज यादव said...

भैया पर्मेंद्र ,यार आपका पोस्ट देख के तो घर कि याद आ गए ...जब हमारे घर पे शादियाँ होती है ,या गाँव मे किसी के यहा कुछ पड़ता है ,सब लोग मिल जुल कर ऐसा ही करते है ...घर कि याद आ रही है ....बहुत ......अब क्या करु ????????

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